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एक प्रसिद्य शायर/कवि का वर्तमान समाज के विषय में “कटाक्ष” (शब्द या भाषा स्मृति के आधार पर प्रस्तुत है,मूल से भिन्न हो सकती है)
नाव वालो गंगा जी तो अपनी हैं,
नाव में किसने छेड़ किया है,सच बोलो
घर के अन्दर झूठों की मण्डली है,
दरवाज़े पर बोर्ड लगा है,सच बोलो !
गुलदस्ते पर यक्जैती लिख रक्खा है,
गुलदस्ते के अन्दर किया रक्खा है,सच बोलो !
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गरीबी और भुखमरी पर एक ” वास्तविकता की अभिव्यक्ति”
भूख से मरा था,सड़क पे पड़ा था,
शर्ट के बटन खोल के जो देखा
तो सीने पे ये लिखा था !
रहने को घर नहीं है,
कहने के सारा हिन्दुस्तान हमारा था !
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कुल के कपटी,कुमंडली कमाल के,
काम के न काज के, दुश्मन अनाज के
क्रूर,कुरूप,कामचोर कर्महीन, घर के न घाट के
,देश के न जात के धरती के बोझ,भार समाज के
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