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चटखारा
रुद्दीन एक दिन अपनी बेगम गुलबदन के साथ पार्क में घूमने गए थे,क्योंकि पिछले काफी समय से गुलबदन की शिकायत थी कि,कि मुल्ला तुम अब उतने रोमांटिक नहीं रहे,…….या तो तुम बूड़े हो गए हो,…या तुम्हारा किसी से चक्कर-वक्कर चल रहा,……..बात मुल्ला के मर्म को चोट पहुंचाने वाली थी….सो मुल्ला तैश में आ गए ………….चल पड़े तुरंत पार्क में बेगम को टहलने……….पार्क में घूमते हुए ,मुल्ला अपनी बेगम के साथ एक बैंच पर बैठकर कुछ देर आराम करने बैठ गए….पर वहां तो एक नयी मुसीवत हो गयी………..बैंच के पीछे झाडी नुमा पेड़ों कि ओट में एक प्रेमी जोड़ा बैठा,रोमांस कर रहा था…………प्रेमी अपनी प्रेमिका से इस प्रकार बातें कर रहा था,मानो अपनी शादी पक्की करने का निर्णय प्रेमिका को बताने जा रहा हो…………गुलबदन ने मुल्ला के कोणी मारी………मुल्ला को बड़ा ताव आया…के अब तो हद हो गयी…..यहाँ पार्क में भी घर जैसी मारपीट और फसाद………..मुल्ला ने घूरकर गुलबदन को देखा………मानो कच्चा चाव जायेंगे…………पर वहां तो बात ही कुछ और थी……….गुलबदन धीरे से मुल्ला के कान में बोली………सुना तुमने,ये प्रेमी प्रेमिका से शादी कि बात करने वाला है,अपने गले में जल्दी ही फांसी का फंदा डालने कि सोच रहा है,वेवकूफ,कुछ तुम ही खांसो,शायद तुम्हारे खांसने-खाकारने से चेत जाए,……………….अब तो मुल्ला और आग-बबूला………..बोले मई क्यों खान्सू……….जिस दिन इसी पार्क में बैठकर मैंने तुमसे शादी करने कि बात कि थी,तब कोई खानसा था क्या………..तब क्या सबके मुंह को ताले लग गए थे,………जब मैं फंस रहा था तब कोई नहीं ख़ासा,अब मई क्यों खंसू,बेबकूफ हूँ मई क्या…..
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