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“ताज महल:कुछ अनछुए पहलु”

Achche Din Aane Wale Hain
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“ताज महल:कुछ अनछुए पहलु”

क्या मुग़ल बादशाह “शाहजहाँ” ने अपनी प्यारी बेगम “मुमताज़ महल” अर्थात “अरजुमंद बानो” से अपने अतुलनीय “प्रेम” को अमरत्व करने के लिए “ताज महल” बनबाया? या अपनी सत्ता कि हनक-धमक और शक्तिप्रदर्शन के प्रतिदर्श को दर्शाने के लिए भव्य एवं स्थापत्य कला के अदित्तीय नमूने “विश्व के सातवें आश्चर्य ताज महल” का निर्माण कराया.

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सबसे पहले हमें “ताज महल” के निर्माण इतिहास के कुछ अनछुए पहलुओं पर विचार करना आवश्यक है-

००१- मुग़ल महारानी “मुमताज़ महल” की आकस्मिक मृत्यु होजाने के बाद ही “इस कालजयी उत्कृष्ट स्मारक ताजमहल” की नीव रखी गयी थी.

००२- मृत्यु उपरान्त “मुमताज़ महल” को मुंबई के समीप “बुरहानपुर” नामक नगर में दफनाया गया था,जो इमारत आज भी,बुरहानपुर में मौजूद है,और मुमताज़ महल के स्मारक के रूप में ही स्थानीय लोगों में जानी जाती है.

००३- आगरा,उ०प्र० में ताजमहल का मूल्य संगमरमर का चबूतरा/फोंडीशन तैयार होने के बाद,”मुमताज़ महल” के शव को बुरहानपुर से एक अतिविशिष्ट “ताबूत” में सुरक्षित रखकर आगरा लाया गया,और “ताज महल” में विधि-विधान एवं रस्मों-रिवाज़ के अनुरूप “पुन: दफनाया” गया था.

००४- आगरा में मुमताज़ महल के शव को बुरहानपुर से लाकर पुन: दफनाने की रस्म का “एक भव्य आयोजन” किया गया था,जिसमें देश विदेश के अनेक सम्मानित राजा,महाराजा,धर्मालम्बी,ज़मींदार,ओहदेदार,विदूषक सम्मिलित हुए थे,

००४- ताज महल के शेष भाग(या यूँ कहें कि मूल्य ताज महल) का निर्माण,चबूतरे में निर्मित “कब्र” में “मुमताज़ महल ” के संरक्षित शव को दफनाने के बाद,पूर्ण किया गया था.

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००५- ताज महल मूल्यत: “पांच मंजिली” इमारत है,जिसमें दोमंजिल भूमिगत हैं,और अंग्रेजी शासनकाल के दौरान सुरक्षात्मक/अन्य कारणों से बंद कर दी गयी,तीसरी मंजिल पिछले दशक में,सुरक्षात्मक कारणों से बंद की गयी,इसी में मूल कब्रें स्थापित हैं.इन कब्रों के चारो ओर कमरों की कतारें हैं.

००६- वर्तमान में हम लोग,ताजमहल की “चौथी मंजिल” जो चबूतरे से ऊपर है,में निर्मित सांकेतिक कब्रों के दर्शन ही कर पातें हैं.और इमारत का भव्य गुम्बद इसकी पांचवीं मंजिल कहलाता है.

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००७ – बुरहानपुर और बाद में आगरा में “मुमताज़ महल” कि कब्र कि देखरेख शाह जहां की सबसे बड़ी बेगम “सुन्नी-तू-निसा” ने की,सुन्नी-तू-निसा की मृत्यु के बाद,उसे ताज महल परिसर के बाहर “एक अष्टकोणीय लाल पत्थर से निर्मित छोटे से मकबरे में दफनाया गया.जो आज भी “ताज महल” परिसर के बाहर ऊँचे से चबूतरे पर स्थित है.

००८ – ताज महल के निर्माण में प्रयुक्त समस्त सामग्रियों( संगमरमर,लाल पत्थर,पत्थर,ईंट,लौह,रेट,मिटटी आदि) से भी अधिक खर्च निर्माण के लिए स्थापित की गयीं “अस्थाई पाड़” (बल्ली,फ़र्रा आदि सहित प्रयुक्त समस्त लकड़ी) में व्यय हुआ था.

009 – मुग़ल शासक “औरंगजेब” ने अपने शासन काल के दौरान “ताज महल” की टपकती छत की मरम्मत कराई थी,और उस समय “मुग़ल बादशाह शाहजहां” जिंदा था,इस मरम्मत के विषय से अवगत कराते हुए,औरंगजेब ने अपने पिता शाह जहां को एक पत्र के माध्यम से अवगत भी कराया था.जो आज भी सुरक्षित और संरक्षित है.

010 – ताज महल के भीतर स्थित असली कब्रों के चारो ओर “सुरक्षा बाड़/रेलिंग के रूप में स्वर्ण की जाली” लगाई गयी थी.अंग्रेजी शासन काल के दौरान ये स्वर्ण सुरक्षा जाली हटाकर “कृत्रिम संगमरमर की सुरक्षा बाड़,मूल स्वर्ण जाली के स्थान पर स्थापित की गयी थी,ऐसा सुरक्षा कारणों से किया जाना दर्शाया गया था.

012 – ताज महल के लिए अधिकाँश रंगीन पत्थर,इमारत पर “कुरआन की आयतें” उकेरने,व् पच्चीकारी सौन्द्रिय्करण के लिए “फारस/ईरान” से मंगवाया गया था.और ये पत्थर ईरान से आगरा “बैलगाड़ियों” से लाया गया था.

013- ताज महल की नीव मूल रूप से लकड़ी के मोटे-मोटे शहतीर (लकड़ी के मोटे स्लीपर) पर रखी गयी है,जिसकी लकड़ी पानी में और अधिक मज़बूत और कठोर होती है,और पानी के प्रभाव से गलन या सड़न इस लकड़ी में जल्दी नहीं होती,नीव के निर्माण में लकड़ी के शहतीरों का प्रयोग किये जाने का पता,ताजमहल की एक मीनार के झुकाव के कारण का पता लगाने के लिए,पुरातत्व विभाग द्वारा की गयी खुदाई से से मालूम हुआ. ०१४- ताज महल की यमुना तट की ओर से दीवार में दो मंजिलों के स्तर पर दरबाजे एवं खिडकियों के खुलने के प्रमाण हैं,जिन्हें बाद में बंद किये जाने का प्रमाण भी हैं. संभवता तात्कालिक रूप से इनका प्रयोग,अंदरूनी भूगर्भीय इमारत में स्वच्छ वायु आवागमन,एवं नदी दिशा की प्राकृतिक सुन्दरता निहारने के लिए झरोखों के रूप में किया जाता होगा. ०१५- मॉनसून की प्रथम वर्षा में पानी की बूंदें इनकी कब्र पर गिरतीं हैं। जैसा कि गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के इस मकबरे के वर्णन से प्रेरित है, “एक अश्रु मोती … समय के गाल पर”। एक अन्य मिथक के अनुसार, यदि शिखर के कलश की छाया को पीटें, तो पानी/ वर्षा आती है। आज तक अधिकारी यहाँ इसकी छाया के इर्द गिर्द टूटी चूडि़यों के टुकडे़ पाते हैं। ०१६- शाहजहाँ की इच्छा थी कि यमुना के उस पार भी एक ठीक ऐसा ही , किंतु काला ताजमहल निर्माण हो [२७] जिसमें उसकी कब्र बने। यह अनुमान जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर, प्रथम यूरोपियन ताजमहल पर्यटक, जिसने आगरा 1665 में घूमा था, के कथनानुसार है। उसमें बताया है, कि शाहजहाँ को अपदस्थ कर दिया गया था, इससे पहले कि वह काला ताजमहल बनवा पाए। काले पडे़ संगमर्मर की शिलाओं से, जो कि यमुना के उस पार, माहताब बाग में हैं; इस तथ्य को बल मिलता है। परंतु, 1990 के दशक में की गईं खुदाई से पता चला, कि यह श्वेत संगमर्मर ही थे, जो कि काले पड़ गए थे। ०१७- 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश वाइसरॉय जॉर्ज नैथैनियल कर्ज़न ने एक वृहत प्रत्यावर्तन परियोजना आरंभ की। यह 1908 में पूर्ण हुई। उसने आंतरिक कक्ष में एक बडा़ दीपक या चिराग स्थापित किया, जो काहिरा में स्थित एक मस्जिद जैसा ही है। ०१८- सन् 1942 में, सरकार ने मकबरे के इर्द्-गिर्द, एक मचान सहित पैड़ बल्ली का सुरक्षा कवच तैयार कराया था। यह जर्मन एवं बाद में जापानी हवाई हमले से सुरक्षा प्रदान कर पाए। 1965 एवं 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय भी यही किया गया था, जिससे कि वायु बमवर्षकों को भ्रमित किया जा सके। ०१९- मुख्य गुम्बद का अभिकल्पक इस्माइल (ए.का.इस्माइल खाँ),[१६] , जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य का प्रमुख गोलार्ध एवं गुम्बद अभिकल्पक थे। ०२०- फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, ०२१- बेनारुस, फारस (ईरान)से ‘पुरु’ को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया ०२२- का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया। ०२३- चिरंजी लाल, दिल्ली का एक लैपिडरी, प्रधान शिलपी, एवं पच्चीकारक घोषित किया गया था। ०२४- अमानत खाँ, जो कि शिराज़, ईरान से था, मुख्य सुलेखना कर्त्ता था। उसका नाम मुख्य द्वार के सुलेखन के अंत में खुदा ०२५- मुहम्मद हनीफ, राज मिस्त्रियों का पर्यवेक्षक था, साथ ही मीर अब्दुल करीम एवं मुकर्‍इमत खां, शिराज़, ईरान से; इनके हाथिओं में प्रतिदिन का वित्त एवं प्रबंधन था। ०२६- ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। पराभासी श्वेत संगमर्मर को राजस्थान से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल]] को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या कार्नेलियन लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे़ गए थे।

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