- 50 Posts
- 205 Comments
जैसा कि आपने हाल में प्रदर्शित फिल्म २०१२ में धरती के धंसने के द्रश्य देखे,वे महज़ एक निर्माता कि सोच और कम्पुटर ग्राफिक्स का कमाल ही नहीं,निकट भविष्य में वास्तविक होने कि संभावना है,और ऐसी घटनाएं वर्तमान दशक में हारत ही नहीं,अन्य देशों में भी हुई हैं.पर धरती धंसने कि ये घटने,इतने छोटे रूप में हुई,कि किसी ने अभी तक इस दिशा में कोई विचार नहीं किया. हमने भूमिगत जल के अन्धाधुन्त विदोहन,प्राकृतिक संसाधनों,पेट्रोलियम,कोयला,अभ्रक,पत्थर,संगमरमर,ग्रेफाईट,लौह अयस्क का अंधाधुन्द खनन कर अपनी धरती को खोकला बनाने में कोई कसार नहीं छोड़ी है,कोयला खानों से कोयला सुरक्षा नियमों कि पूरी अनदेखी करते हुए खाना किया जा रहा है,जबकि नियमानुसार खनन के बाद रिक्त स्थान को बालू से भरा जाना चाहिय,बालू न भरने से दूसरा सबसे बड़ा नुक्सान,कोयला खदानों में दुर्घटना वश आग लग जाने पर होता है,क्योंकि ये रिक्त स्थान आग संचरण के लिए…………..आग में घी का काम करते हैं,………….और दुर्घटना वश लगी आग किलोमीटरों में संचारित हो जाती है,और ऐसी आग पर काबू पाना असंभव नहीं तो,कठिन तो है ही…………………दूसरी बात,कोयला उत्खनन से खाली हुई परित्यक्त खानों में इतना कोयला तो शेष रह जाता है,कि दुर्घटना वश लगी आग वर्षों तक इनमें जलती रहती है……………..प्रयोग में न लाये जाने के कारण,इनमें लगी आग को बुझाने के भारी धनराशी व्यय न तो उत्खनन करने वाली फार्म लगाना चाहती है,और नाही इस घाटे के सौदे में सरकार ही रूचि दिखाती है,तीसरी बात ये है कि ऐसी आग दुर्घटना पर नियंत्रण के न तो प्रयाप्त संसाधन हमारे पास हैं,न ही इस आग को बुझाने में अभी हम सक्षम हैं………………….
सिघ्भूमि……………झरिया……………….आदि जैसे झारखंड एवं बिहार कि कई खाली कोयला खदानों में वर्षों से आग सुलग रही,जिसे भुझाया नहीं जा सका है, दोनों प्रदेशों के कई शहर और कसबे ऐसी ही खोकला कोयला खानों के ऊपर खतरे के ढेर पर बसे हैं,…………जहां कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है,……………….कुछ कस्वों के नीचे वर्षों से बुमिगत आग सुलग रही है……………..कई स्थानों पर ये आग धरती के ऊपर भी प्रकट हो जाती है. वर्तमान में ज्ञात प्राकृतिक संसाधनों के भंडार,यदि इसी प्रकार खर्च किये जाते रहे,तो वो दिन दूर नहीं,जब पेट्रोलियम पदार्थ(खनिज तेल) कोयला,अभ्रक,तांबा,जल,लौह अयस्क आदि इस पृथ्वी की दुर्लभतम वस्तुओं की सूचि में नज़र आयेंगे.एक अनुमान के अनुसार,यदि आगामी समय में विश्व इसी गति से इन प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुन्द उपयोग करता रहा,और कोई नया भण्डार नहीं खोजा जा सका,तो अगले ३० से ४० वर्षों में विश्व से पेट्रोलियम पदार्थ/खनिज तेल ख़त्म हो जाएगा,इसी दशा में कोयला केवल आगामी १६ वर्षों में समाप्त हो जाएगा,जल तो निश्चित रूप से आगे कुछ ही वर्षों दुर्लभतम वस्तुओं में शामिल हो जाएगा,अन्य संसाधनों का भी कुछ ऐसा ही हाल अगले २० से ५० वर्षों के दौरान हो सकता है.
अगले ३० से ५० वर्षों के बाद,विश्व में केवल वे ही सभ्यताएं और देश अपनी अर्थव्यवस्था और अवश्यक्तायों की पूर्ति में संभव हो पाएंगे,जिनके पास प्रयाप्त प्राकृतिक संसाधनों का वृहद एवं सुरक्षित भण्डार होगा.यदि आगामी भविष्य में २०-३० वर्षों के दौरान किन्हीं कारणों वश “संभावित तृतीय विश्व युद्ध” होता है,तो ये अवस्था विश्व की सभी प्रमुख महासक्तियों के समक्ष पूर्व ही उत्त्पन्न हो जायेगी.
एक प्रसिध्य वैज्ञानिक के आकलन के अनुसार,यदि भाविष्य में “तृतीय विश्व युद्ध” किन्हीं कारणों से लड़ा गया,तो उसकी बिभिशिका से मानव सभ्यता लगभग अपंग हो जायेगी,संभावना तो यहाँ तक है कि “संभावित तृतीय विश्व युध्य” होने कि स्थिति में,हो सकता है मानव अपने वंश को ही खो दे,और इस हरित पृथ्वी से मानव वंशीय समस्त जनसँख्या समूल नष्ट हो जाये.यदि ऐसे किसी युद्ध के बाद मानव सभ्यता यदि बच भी गयी तो वो इस परिस्थिति में होगी……..कि चौथा विश्व मानव “तीर-कमान और भालों” से लड़ा जायेगा.
हमने अपनी माटी का मोल नहीं समझा,और विदेश के कचरे को भी मूल्यवान कीमती समझा,आज हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को वहुद्देशीय कंपनियों के हवाले करने में,अपना विकास और प्रगति देख रहे हैं,जो कि एक मारीचिका के अतिरिक्त कुछ नहीं…………………बल्कि इस निति से हम अपनी जड़ें ,अपनी धरती ,अपने देश को करने कि भूल कर रहे हैं.
Read Comments