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अरुधंति और शेखचिल्ली

Achche Din Aane Wale Hain
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“कि इस समाज में ईमानदार वो है,जैसे चोरी करने का अवसर नहीं मिला” सो अरुधंति जैसे लोग तब तक ईमानदार रहते है,या यूँ कहें देशभक्त हो सकते हैं———–जब तक उन्हें चोरी का मौका नहीं मिला———-जहां मौका मिला,ऐसे लोगों ने अस्मिता से खिलवाड़ करने में संकोच नहीं किया.


शेखचिल्लियों की एक कहानी मैंने सुनी है,झूठ या सच ये तो पता नहीं………………पर है बड़े मज़े की,विल्कुल अरुधंति राय जैसे रहे होंगे,कहानी किसी सुदूर एवं अति-पिछड़े इलाके के गाँव की है,उस गाँव में अभी विकास की हवा नहीं चली थी…..शायद दुर्गम इलाका रहा होगा………..मैंने सुना है ऐसे ही किसी गाँव में चोरी हो गयी,रात में…..चोर भी सब-कुछ माल उड़ा ले गए ……सो पुलिस आई हुई थी गाँव में,अगले दिन चोरी की जांच करने……..पुलिस महानिरीक्षक से लेकर,कोतवाल तक,हवलदार से लेकर जमादार तक……………..पर चोरों का कोई सुराग नहीं मिल रहा था…………..कोई सवूत छोड़ कर नहीं गए थे वे चोर……………..ज़रूर कलमाड़ी जैसे चालाक और चपल रहे होंगे.…………….सो पूरा थाना अपना सर खुजा-खुजा कर हार गया…………..तो फिर उस कोतवाल ने कहा,कि है कोई आदमी इस भीड़ में,या यहाँ का निवासी,जो चोरों का कुछ अत-पता बता सके?………….हमारा तो पूरा स्टाफ नहीं खोज सका………….यदि आपमें से हो कोई महान विद्वान,जो बता सके चोरों के विषय में कुछ सुराग………….तो हमें बताये,हम बहुत इनाम देंगे……


.नाम है उसका शेखचिल्ली……..बड़े कमाल का आदमी है,बहुत जानकार…………बहुत ही ज्ञानी…..…..हमारी जब भी कोई ऐसी समस्या आती है,जिसका हल हम नहीं खोज पाते………..तो वोही विद्वान शेखचिल्ली हमारी समस्या कल हल बताता है…………..बड़ा महान ज्ञान और पांडित्य पुरोधा है……………इस इलाके का सबसे जानकार आदमी है. एक बार रात में एक हाथी हमारे गाँव से निकलकर चला गया था,अँधेरे में किसी ने देखा भी नहीं……….और पहले भी हमारे गाँव के किसी आदमी ने कभी हाथी नहीं देखा था……………….सुबह जब धुल में हाथी के पाँव के निशान हमने देखे,तो सब घबरा गए……………..जाने कौन पिशाच…या दैत्य हमारे गाँव में आया था…………कोई नहीं बता पाया था,कि ये निशान किस चीज़ के हैं. तब इसी शेखचिल्ली ने हमें बताया था,……तत्काल बता दिया था उसने,बस चुटकी भर में………...”कि हो न हो,बाँध पैर में चकिया,ज़रूर कोई हिरणा कूदा होय”…………………..उसे ने हमें बताया था,कि अपने पैरों में चक्की बाँध कर,रात में ज़रूर कोई हिरण हमारे गाँव में कूदा होगा” उसी चक्की के निशान हैं धूल पर…………..इसी ने हमें बताया था,बड़ा जानकार है…..सो चोरों के बारे में बस वोही कोई सुराग बता सकता है.बता क्या सकता है…………


ये मानो बता ही देगा,चोरों के वारे में,विल्कुल सटीक. सो पुलिस महानिरीक्षक ने उस शेख चिल्ली को बुलवाया,और पूछा……कि मुझे पता लगा है,कि तुम बहुत जानकार और ज्ञानी हो….तो हमारी समस्या का हल भी बता दो…..सुवह से पूरा थाना और पूरा विभाग हलकान है…….भाई कुछ मदद करो हमारी……………..ये सुनकर शेखचिल्ली ने कहा,मई जानता हूँ कि चोरी किसने कि है……………….मै आपको बता सकता हूँ……..विल्कुल तक्षण ……अभी के अभी बता सकता हूँ………….सब बड़े हैरान हुए,और खुश भी…………..कि ये तो बड़ा ज्ञानी है,जितना सुना है उससे भी ज्यादा……………कमाल का आदमी है……………सो कोतवाल ने शेखचिल्ली से पूछा बताओ,किसने कि है ये चोरी. शेखचिल्ली बोला,ऐसे यहाँ पर आपको नहीं बता सकता …………इसमें मेरी जान का खतरा है………….विल्कुल गोपनीय तरीके से वताऊंगा…………विल्कुल एकांत में……अकेले में……जहां दूर-दूर तक कोई हमारी बात न सुन सके…………..बस मै कहूँ-और तुम सुनो……..बस एक पर एक हो………………..सो गाँव से दूर जंगल में चलो,वहां बताऊंगा,किसने की है ये चोरी. कोतवाल शेखचिल्ली की बात मानकर उसके साथ गाँव से दूर जाने लगा………….जब काफी दूर आ गए,तो कोतवाल ने कहाँ,अब यहाँ कोई नहीं है…………तुम अब बताओ चोरी किसने की है…………शेखचिल्ली बोला यहाँ नहीं,अभी और दूर चलो,यहाँ गाँव अभी नज़दीक है,कोई सुन सकता है……….सो कोतवाल शेखचिल्ली के साथ चलता रहा,जब तक की शेख चिल्ली खुद नहीं रुक गया……………रुक जाने के वाद,कोतवाल ने कहा…..अब बताओ किसने कि है ये चोरी ?………………


शेखचिल्ली ने कहा ऐसे खुले में नहीं बता सकता………..अपना कान मेरे करीब लाओ,धीरे से………..हौले से…….चुपके से ……….ये राज़ मै आपके कान में बताऊंगा………….क्योंकि अगर किसी ने सुन लिया तो गज़ब हो जाएगा. मजबूरन अपना कान शेखचिल्ली के मुंह के करीब लाया……………..तब शेखचिल्ली ने बड़े धीरे से………….फुसफुसाते हुए बताया….कि हो न हो…………………..ये चोरी जिसने भी की बहुत ही चालाक रहा होगा…..सो ज़रूर ये चोरी किसी चोर ने ही की है……मै दावे से कहता हूँ,कि किसी चोर ने ही कि है ये चोरी…………………


और विल्कुल उसी शेखचिल्ली के समान अरुधंति राय,और गिलानी..…………खुद को महाज्ञानी दर्शाने के लिए ……………ये कतिपय वयान देकर तमगा हासिल करना चाहते है……………………..कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग कभी नहीं रहा है,……………..अरुधंति जी थोडा बहुत साहित्य लिख लेने से…………या एक बुकर पुरस्कार पा लेने से …………हर क्षेत्र में प्रकांड पांडित्य नहीं हो जाता……………….आप साहित्यकार हैं,…………साहित्यकार ही रहिये…………..”ऐसा लगता है,अरुधंति जी को या तो हमारे देश में औकात से अधिक सम्मान मिला है,……ये उन्हें इज्ज़त रास नहीं आ रही है………………ज़रा सी प्रसिद्धि मिली नहीं,कि आसमान में उड़ने लगे……………….अरुधंति जी जब दूसरों के पंखों के सहारे , आसमान से कोई ज़मीन पर गिरता है……….तो मात्र शरीर बचता,प्राण रास्ता में ही खर्च हो जाते है.


पूर्व प्रधानमन्त्री से जुदा एक किस्सा याद आता है………..सच-या-झूठ इसका तो अनुमान नहीं………….वैसे मुझे तो सच जैसा ही लगता है…………….जिस प्रकार ऊल-जलूल हरकतें हमारे राष्ट्रीय नेता करते हैं और उनकी मानसिकता है ……….उससे तो लगता है,ये सत्य ही होगा . ८० के दशक से पूर्व कि घटना है,जब “देश में जनता पार्टी” कि सरकार गिरी ही थी,जनता पार्टी ने अपने इस शासन काल में “केकड़ों कि भांति कार्य शैली” का बड़- चड़कर प्रदर्शन करते हुए,मात्र चंद दिनों में देश को कई प्रधानमन्त्री (श्री चौधरी चरण सिंह,श्री गुलजारी लाल नंदा,श्री मोरारजी देसाई आदि) दिए,ये लोग बस प्रधानमन्त्री ही बदलते रहे,शासन भली प्रकार चलाने कि फुर्सत ही नहीं मिली–———ये ही वो दौर था,जब डीजल और मिटटी के तेल पर कोटा प्रणाली लागू हुई……….अर्थात टोकन से तेल मिलता था————-कुछ लोगों को तो सर पर चुपद लेने भर डीजल भी नहीं मिल पाया इस दौरान………………...इनके ही शासन-काल में प्लास्टिक के पुराने जुटे-चप्पलों से बराबर भाव में चीनी बिकी थी………….यहाँ तक कि चीनी गाँव में रस्सियों से (वस्तु के बदले वस्तु-विक्रय प्रणाली) बदले में भी बिकी थी………… तो बात इसके बाद कांग्रेस के शासन काल के दौरान “देश में आसाम समस्या ज्वलंत” मुद्दा थी,हांलाकि जनता पार्टी के शासन काल में भी ये मुद्दा उतना ही ज्वलंत था,पर उन्हें प्रधानमन्त्री बदलने से फुर्सत ही नहीं मिली,जो कुछ देखते. …………………..सो इस समस्या का समाधान खोजे जाने की चर्चाएँ जोरों पर थीं,जैसे आजकल की कश्मीर समस्या…………….


आसाम समस्या का हल उनके पास है,वे इस समस्या को सहज ही सुलझाने का नुस्खा जानते हैं,मगर……………(ये वोही मगर/लेकिन शव्द है,जिसके प्रयोग किये जाने पर,उसके पीछे कही साड़ी बात स्वत: असत्य…झूठी हो जाती है) सो मोरारजी जी ने कहा—————-अगर भारत के राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह,उनसे (यानी मोरारजी देसाई से) कहें तो वे आसाम समस्या का हल,चुटकियों में कर देंगे..……………………..अरे भाई जब तुम्हारा शासन काल था,तब समस्या हल क्यों नहीं की…………नुस्खा तो तुम्हारे पास था…………तब क्या करते रहे..……उनसे पूछा जा सकता था…………..सो काफी दिनों तक,वो ऐसे ही वयां देते रहे……………चर्चा चली…….बात ज्ञानी जैल सिंह जी तक पहुंची……………………….सो उन्होंने वक्तव्य देते हुए,अनुरोध किया———–कि देसाई जी यदि समाधान जानते हैं,तो सुलझा दें…………………..अब बात जब मोरारजी देसाई तक पत्रकारों ने पहुंचाई,और कहा आप बताइये,आसाम समस्या का हल,राष्ट्रपति जी ने आपसे अनुरोध किया है,………..सम्पूर्ण भारत को आपसे बहुत आशा है……………तब मोरारजी देसाई ने कहा,ऐसे मई सड़क छाप थोड़े ही हूँ,कि जाऊं और समाधान कर दूँ……………………सरकार मुझे निमंत्रण पात्र भेजे,तब जाऊँगा समाधान बताने दिल्ली……………………सो कुछ ही दिन में निमंत्रण पात्र भी भारत सरकार से मोरारजी जी के पास आ गया………………………..अब पत्रकार फिर मोरारजी जी से पूछने लगे……………..जाइए,अब तो समाधान,बता दीजिये……………………..अब बात फंसती नज़र आई,क्या जवाब दें…………. सो कहने लगे ऐसे क्या ख़ाक जाऊं……..पहले मुझे,रेल के आने-जाने का टिकट तो भेजें,राष्ट्रपति जी..……………………..


..अपने राष्ट्र की गरिमा और प्रतिष्ठा का संहार करने का प्रयास किया है. किसी अरुधंति या गिलानी के कह देने मात्र से कश्मीर से अलग नहीं जाएगा……..और कश्मीर भारत का अंग है,………….और रहेगा………………जो लोग को कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते है………………वो भी जाने-अनजाने में अरुधंति और गिलानी के विचारों(या यूँ कहें कि कुत्सित विचारों/कुविचारों) को ही हवा दे रहे हैं.…………..कश्मीर भारत का अंग है,न कि अभिन्न अंग……….मात्र अभिन्न शव्द जुड़ जाने से ही…………..इसमें संदेह पैदा हो जाता है…………..अभिन्न का सामान्य अर्थ है…………जिसे मूल इकाई से अलग न किया जा सके…………अर्थात उसकी अलग होने कि संभावनाएं हैं……यानी उसे कभी भी अलग किया जा सकता है…………हांलाकि वर्तमान में उसे ऐसे जोड़ा गया है कि ऐसी अवस्था में उसे किया जाना संभव नहीं है………..उसे जोड़ा गया है………..एक जोड़ है,दो इकाइयों का…जिसे एल्फी से…..या फेवी क्विक से……..या अरेल्डाईट से….किसी अन्य माध्यम से………….ऐसा जोड़ दिया गया है,जो वर्तमान दशाओं में अलग नहीं किया जा सकता…..एक तरह से बैल्डिंग कर दिया गया……जो कभी भी अलग परिस्थितियाँ आने पर अलग हो सकता है………….जहां जोड़ लगाया जाता है,वो टूटता ज़रूर है,अलग ज़रूर हो जाता है…..कभी न कभी…………..क्यों अभिन्न का अर्थ जो मूल्य से अलग न हो..….जो लोग कश्मीर सन्दर्भ में अभिन्न शव्द का इस्तेमाल कटे हैं,वो कहीं न कहीं अलगावबाद को ही हबा दे रहे है………………..अर्थात वो ये मान रहे हैं,कि कश्मीर भारत से जोड़ा गया अंग है,जो अब अलग नहीं हो सकता. हम ऐसे विचारों के स्थान पर उन विचारों को ज्यादा सार्थक,और सत्य मानते हैं,जिनमें कश्मीर को भारत का अंग माना जाता हो,न कि अभिन्न अंग…………क्योंकि मात्र एक छोटे से शव्द ने संशय पैदा कर दिया………भ्रम उत्पन्न कर दिया…………..संदेह कि संभावना पैदा कर दी…….


“कश्मीर भारत का अंग है………..ठीक वैसे ही जैसे अन्य प्रदेश…..उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश,महाराष्ट्र,आंध्रप्रदेश,तमिलनाडु ………….आदि…………सब भारत भूमि का हिस्सा हैं..……………………………….और मै तो यहाँ तक भी कहना चाहूँगा (हांलाकि मेरी बात पक्ष विशेष को बुरी लग सकती है,जिसके लिए मैं क्षमा याची हूँ) कि हमने महाराष्ट्र का नाम भी,जाने-अनजाने में गलत या यूँ कहें कि त्रुटिपूर्ण रख दिया है……………जो कभी आने वाले समय में,केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष समस्या पैदा कर सकता है,कारण भारत कैसा राष्ट्र है,जो राष्ट्र के अन्दर “महाराष्ट्र” है,देश के अन्दर “महादेश” ये कैसा संयोग...…………….ये कैसा विरोधाभास…………कहीं न कहीं ये शव्द भी अलगावबाद को हवा दे सकता है……………..भाषा और विचारों के मर्म को समझें.

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