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आओ आलोचना करें.

Achche Din Aane Wale Hain
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मिश्रा जी,कृपया देश को आगे बदने दीजिये

भगवान् भी क्या खूब है,इधर पब्लिक को मूर्ख बनाता है,…………………अरे ये बार-बार अलग-अलग महात्मा,अवतार,संत धरती पर पैदा करने की क्या आवश्यकता ,………………सैकड़ों,हजारों नहीं लाखों की संख्या में भेज दिए,थोक में………………… पब्लिक को बेकार ही झंझट में डाल दिया………………. झगडे-फसाद करा दिए,यहाँ …………… की इसका भगवान्,मेरे भगवान् ज्यादा सफ़ेद कैसे……….अरे भेजना ही था,तो एक भेज देता….दो भेज देता …………… यहाँ तो भीड़ पैदा करदी,अब बेबजाह यहाँ रोज़ फड्डे हो रहे हैं,जहां तहां…………..झगडे करें हम……..तर्क-वितर्क करें हम………… और पूजा के लड्डू मलाई का भोग लगे भगवान् को………..यहाँ हम हालाक हुए जा रहे हैं,भगवानों की प्रितियोगिता में………मरे जा रहे हैं,अपने भगवान् को सबसे बड़ा सावित करने में…………..चौबीस घंटे महामैराथान में दौड़ लगाए पड़े है…….पसीना बहा रहे है,अपने भगवान् को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए.

पूजा हो भगवान् की,मारें हम….कटें हम…..दिन रात एक करें हम…….मज़े लूटे भगवान्………………न हल्दी लगे,न फिटकरी फिर भी रंग चोखा……………पब्लिक को बेबकुफ़ बंनाने का तरीका भी खूब इजाद किया है………………अरे भगवान् भेजना था तो एक भेज देता दो भेज देता…………पूरी की पूरी फ़ौज भेज…..लफड़ा नहीं होगा तो किया होगा…………पूजा हो भगवान् की,मारें हम…नरक जाएँ हम…..खाने को दो जून की डाल-रोटी नहीं,तिस पर फिकर भगवान् को प्रथम लाने…..जुगाड़-तुगाड़ झूठ कपट जाने क्या-क्या करना पड़ता है,भगवान् के लिए…………….तिस पर बढ़िया मेवों मिठाइयों के छप्प्नन भोग ……….भगवान् की तो मौज-ही-मौज.

अरे जितना को भेजना था,धरती पर देवता अवतार बना कर…..एक साथ भेज देता…….तब पता चलता कम्पटीशन क्या होता है…….जब आमने सम माल युद्ध होता,भगवानों के वीच…….सब डाल-आटे का भाव पता चल जाता…..सबकी पोलें खुल जाती…..और इधर पब्लिक चैन से आराम से विजेता के गले में हार डालकर अपना भगवान् चुन लेती…….न लड़ाई न झगडा,…जो जीता वो सिकंदर……………श्रेष्ठ में सर्वश्रेष्ठ जो होता…वोही छात्र धारण करता.

यदि पैगम्बर मोहम्मद वर्तमान युग में धरती पर अवतरित होते,तो क्या हाथ में तलवार लेकर चलते……..और भगवान् श्री राम आज के दौर में जन्म लें,तो क्या धनुष-वाण धारण करेंगे………………निश्चित ही नहीं…..आज के युग में यदि भगवान् श्री राम कहीं से धनुष-वाण लेकर निकल जाएँ,उनकी तो फजीहत हो जायेगी…….गली मोहल्ले के बच्चे पागल समझ कर दौड़ा लेंगे……ऊपर से दस-बीस ईंट पत्थर भी पड़ जाएँ तो भी आचार्य नहीं ……….. ऐसी हालत में लोग उन्हें “भगवान्” तो क्या मांगे……किसी नुक्कड़-नौटंकी का अभिनेता या जोकर समझ लें…….ये भी बड़ी बात होगी.

आज के युग में उन्हें “कम-से-कम” एक ए.के. ४७ या ए.के. ५६ ही रखनी पड़ेगी,और वो भी लायसेंसी……अन्यथा अवैध शास्त्र रखने और शान्ति भंग करने के आरोप में अन्दर कर दिए जायेंगे.दूसरी बात है सवारी या वाहन……तो आज के युग में “घोड़ों ऊँटों या हाथी” से काम चलने से रहा,कम-से-कम एक अदद स्टाइलिश बाइक तो रखनी ही पड़ेगी,स्पोर्ट कार फोर्ड आइकोन या तवेरा हो तो और भी अच्छा………एक भगवान् बनने के लिए इससे कम में काम नहीं चलने वाला……एक अदद लैपटाप और बढ़िया मोबाइल गैजेट का भी जुगाड़ उन्हें करना पड़ेगा…………वो दौर और था,जब सस्ते में भगवान् बना जा सकता था.

यहाँ ये बात कहने का तात्पर्य कुछ अलग है,जिसका कारण है…………कुछ लोगों का पैगम्बर मोहम्मद (स.अ.व्.) के “तलवार” धारी होने पर हाय तोवा मचाना………..मोहम्मद ने “तलवार” धारण क्या कि……….सबके पेट में दर्द शुरू…..कि मोहम्मद ने तलवार के बल पर इस्लाम फैलाया……..इस्लाम तलवार के बल पर फैलाया गया……

मै पूछता हूँ,मोहम्मद ने यदि तलवार के जोर से इस्लाम फैलाया….तो क्या भगवान् श्री राम ने “धनुष-वाण” के बल पर वलात “हिन्दू धर्म” फैलाया होगा…..क्योंकि भगवान् श्री राम “धनुष-वाण” धारण करते थे…..निश्चय ही धर्म फैलाने में प्रयोग करते होंगे………..और भगवान् शंकार “त्रिशूल” धारी ने “त्रिशूल कि नोक” पर धर्मांतरण कराया होगा…………..परशुराम ने “फरसे” से मारकाट मचाई होगी,जो इतने अनुयायी बनाए……गुरु नानक देव…..गुरु तेगबहादुर ने भी “तलवार” के बल पर “सिक्ख” धर्म अपनाने को लोगों को मजबूर किया होगा,और तलवार के वल पर ही इतनी संख्या में अपने मानने बाले अनुयायी बनाए……….सृष्टि के प्रारम्भ से आज तक लाखों देवता,पैगम्बर,संत,अवतार,भगवानों ने धरती पर जन्म लिया,और उनमें से अधिकाँश “कोई-न-कोई शास्त्र” अवश्य धारण करते थे…………..तो क्या ये माना जाए कि जितने संत,महात्मा,पैगम्बर,देवता,अवतार पैदा हुए,सबने अपने हथियारों/अस्त्रों से आतंकित कर अपना अनुयायी बनाया,और अपनी पूजा करने पर उन्हें मजबूर किया…….अर्थात लोग धर्म के “वलात अनुयायी” बनाए गए,उनकी इच्छा के विरुद्ध……यानी हर धर्म की जड़ें “हिंसा,भय और आतंक” के सहारे स्थापित की गयीं.

इसमें भी एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी,कि यदि सभी धर्म “अस्त्र-शस्त्रों” के प्रयोग और “हिंसा,आतंक और भय” से स्थापित किये गए…..तो कृष्ण का,बुद्द का,महावीर आदि का तो एक भी अनुयायी नहीं होना चाहिए………..क्योंकि भगवान् बुद्द ने कभी कोई अस्त्र धारण नहीं किया,कृष्ण तो बेचारे बांसुरी से ही काम चलाते थे,…..और महावीर एवं जीसस(ईसा मसीह) ने तो संभवतया कभी किसी शस्त्र को धारण करने कि कामना भी ना कि होगी……….तो उनको पूजने वाले कहाँ से पैदा हो गए.

मिश्रा जी,अगर इस्लाम का प्रसार “तलवार” के बल पर हुआ,और पैगम्बर मोहम्मद ने “तलवार” के जोर से धर्मांतरण कराया……….. तो ये १००% भूल,और थोथी कपोलकल्पित धारणा है.

भगवान् श्री राम जब “धनुष-वाण” धारण करते है,तो आपको कोई आपत्ति नहीं……….और पैगम्वर मोहम्मद जब “तलवार” धारण करते हैं,तो गलत….यदि आप कहते हैं,मोहम्मद ने “तलवार” के बल पर इस्लाम फैलाया,तो हमें किंचित और लेशमात्र भी संकोच नहीं है,ये कहने में…..कि भगवान् राम ने “धनुष-वाण” के वल पर धर्मांतरण कराया,और हिन्दू धर्म का प्रसार किया.

जब भगवान् राम का युग था,तव सबसे संहारक आयुध/हथियार “धनुष-वाण” और “त्रिशूल” था,सो उन्होंने “धनुष-वाण” धारण किया,और अपनी सुरक्षा के लिए अपनाया ……….जब पैगम्बर मोहम्मद का समय आया,तब सबसे कारगर हथियार “तलवार और ढाल” था,सो उन्होंने तलवार और ढाल को अपना रक्षात्मक उपकरण चुना,और धारण किया.

जब “संत गुरु नानक देव जी ने अपने धर्म का प्रचार किया,तो उन्होंने “तेग-तलवार” को अपनाया,साथ ही सिक्ख धर्म के अनुयाइयों को “केश-कंघा-कड़ा……..” और तेग/तलवार धारण kiya

बात आपको बुरी भी लगेगी,और कडवी भी….क्योंकि सच सदैव कडुवा लगता है,और धर्म पर चोट…..आत्मा और मर्म पर चोट पहुंचाने सद्रश्य है……..जब कोई हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद कि बात करता है,तो आपकी भ्रिक्तियां चढ़ जाती है,और नैन अंगारे बन लावा उगलने को उद्दत………….पर क्या कभी अपने ह्रदय पर हाथ धर आपने कल्पना की है,……….. जब एक देशभक्त नागरिक जोकि मुस्लिम है…….. के समक्ष इस्लामी कट्टरपंथ और आतंकवाद को सीधे सभी मुसलमानों के सन्दर्भ में संवोधित किया जाता है,तो उसके मर्म को समझने का प्रयास करें.

हमारे भ्राता परमज्ञानी,विद्वान अधिवक्ता श्री मिश्रा जी,आप धार्मिक संकीर्णता,संकुचित धार्मिक विचारों और व्यक्तिगत पूर्वाग्रह,अहंवादी अभिव्यक्ति का परित्याग कर,अपनी एक स्वतंत्र धार्मिक विचार भावना का सृजन कीजिये…………..धार्मिक कट्टरपंथ हर एक के लिए नुकसानदायी है,चाहें वो किसी भी धर्म से संवंधित हो……हमें संकीर्णता समाज और समुदाय के लिए हानिकारक तो है ही,उसके पतन का कारण भी बनजाती है…………….चाहें वो इस्लामिक कट्टर पंथ हो….हिन्दू कट्टरपंथ हो……….इसाई कट्टर पंथ हो…………कट्टरपंथ सदैव उससे जुड़े धर्म और समस्त मानवता के लिए आत्मघाती है.

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