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आज-कल हमारे सभ्य समाज की मानसिकता और सोच को “फ़राक गोरखपुरी” के इस शेर से भली-भाँति समझा जा सकता है,…………………… जिसमे “फ़राक” शव्द के समरूप “फ़िराक” और “फ़्राक” शव्द की पुनरावृत्ति है,अर्थात “यमक अलंकार” कोटि के “छंद” का प्रयोग किया गया है…………………….परन्तु अलग-अलग स्थानों पर समान शव्द के “शाव्दिक अर्थ” अलग-अलग हैं. इस शेर का भाव आशय कुछ यूँ है-
तुम जिस चीज़/वस्तु( फ़्राक की वेल्ट) को किसी दूसरे के पास खोज रहे हो,…..वो चीज़/वस्तु खुद तुम्हारे द्वारा पहने गए “स्कर्ट” में है.
विस्तारित व्याख्या लेख के अंतिम भाग में देखें
हर व्यक्ति चांहे वो सभ्रांत हो,…..सज्जन हो,…..धर्मात्मा हो………महात्मा या कितना ही धार्मिक क्यों न हो…………… पर सभी की आंतरिक सोच और व्यवहार एक जैसे “व्यभिचारात्मक” हैं,जो जितना अपनी सोच और व्यवहार को संयमित कर ले,…अपने अन्दर की गन्दगी को छिपा सके,ढांप सके,……………… और जो जितना अधिक छदम अभिनय करने में दक्ष हो…………जो जितना ज्यादा अन्दर से खोकला पर बाहर से अपने आपको लीप-पोत ले………..वो उतना ही महान कहलाता है.
समाज दर्पण प्रतिविम्व इस गीत से पूर्ण एवं सटीक व्यक्त होता है –
क्या मिलिए ऐसे लोगों से,जिनकी फितरत छिपी रहे,नकली चेहरा सामने है,असली सूरत छिपी रहे……….
एक और फ़िल्मी गीत भी “कुछ यूँ ही अंदाज़े-वयां” करता है-
खाली डब्बा,खाली बोतल लेले मेरे यार………….भरे हुए का क्या भरोसा,खाली सब संसार.
खाली की गारंटी दूंगा……………..भरे हुए की क्या गारंटी.
न जाने किस चीज़ में किया मिला हो…………….गरम मसाला लीद भरा हो.
छान-पीस कर खुद भर लेना………….. जो कुछ हो हो दरकार.
सब कुछ खोकला और दिखावटी है,इस संसार में………और ये विक्रेता कम से कम अपने उत्पाद का प्रचार “सच्चाई” के साथ तो कर रहा है…………..वर्ना आजकल तो “प्रचार” के “ब्रांड एम्बेसडर” बहुत महान हस्तियाँ “झूठ और झूठ” बोलकर,वहुराष्ट्रिय उत्पादकों और खुद का असीमित क्षेत्र में विस्तारित पेट भर रहे हैं……………..
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