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भारत में काफी का परिचय कराने,काफी के पौधे के बीज अपनी हज-यात्रा के दौरान “यमन से सात फलियाँ” कपड़ों में छिपाकर लाने,और उन्हें चिकमंगलूर पहाड़ियों पर रोपने,एवं काफी बनाने की बिधि का ज्ञान कराने का श्रेय “रहस्यवादी सूफी-संत बाबा बूदन”को जाता है,जिनके नाम पर अब चिकमंगलूर की पहाड़ियां “बाबा बुदन की पहाड़ियां” कहलाती हैं,और काफी की फलियों को “बाबा बूदन की फलियाँ/ सात फलियाँ ” भी कहा जाता है.
1- भारत में काफी का पहला पौधा “एक मुस्लिम हज यात्री बाबा बूदन” ने १६७० ईस्वी में “यमन देश” से लाकर “चिकमंगलूर पहाड़ियों ” पर लगाए थे.अपनी हज यात्रा के दौरान उन्हें “पवित्र मक्का शहर” से काफी के विषय में जानकारी मिली,और लौटते समय वे “सात काफी की फलियाँ” चुपके से अपने शरीर पर कपड़ो के नीचे छुपा कर लाये,जिनके बीज उन्होंने दक्षिण भारत की चिकमंगलूर पहाड़ियों पर अपनी गुफा के आस-पास लगाए………….और बाद में पौधों से प्राप्त फल के बीजों को भून कर काफी पेय बनाने का ज्ञान का प्रसार भी भारत में उन्होंने किया. २- चिकमंगलूर की पहाड़ियों पर पहला काफी का पौधा रोपने,और काफी बनाने के ज्ञान,का भारत में प्रसार करने के उपलक्ष में उन पहाड़ियों का नाम बदलकर “बाबा बूदन की पहाड़ियां ” रख दिया गया,और आज भी ये इसी नाम से जानी जाती हैं. ३- काफी पेय के बीजों को भुनकर पीसकर काफी पाउडर बनाने की कला “मुस्लिम सूफी-संतों” ने पंद्रहवीं शताव्दी में “अरब” में खोजी,विश्व में काफी पेय स्वं बनाकर पहली बार पीने का श्रेय “यमनी रहस्यवादी सूफी संत अकबर अबू अल हसन अल शाह्दिली ” को जाता है……….. कहा जाता है की अपनी इथोपिया यात्रा के दौरान उन्होंने देखा की कुछ चिड़ियाँ एक विशेष बेरी जैसे पेड़ के फल खाकर “असामान्य तेजी से उड़ने लगी” हैं इस घटना को सुनकर वो फल उन्होंने अपने लिए मंगाए,पर कुछ सोचकर उन्होंने वो फल जलते अलाव में फेंक दिए,फलों के जलते ही एक भीनी सुगंध निकलने लगे तो संत ने एक अधजले फल को निकालकर खाया,तो उसके अद्भुद गुण का ज्ञान हुआ,फिर उन्होंने इससे काफी पेय बनाने की कला खोजी. ३- १५८७ ईस्वी में इतिहासकार “अवद अल-कादरी अल-जज़ीरी” की पुस्तक “उम्दात अल-सफ्वा फी हिल अल-कहवा”के अनुसार काफी पेय बनाने की कला का विकास सन १४५४ ईस्वी में “शेख जमाल अल-दीन अल-धाभानी” नामक “अदन देश” के मुफ्ती नें किया. ४- विश्व में काफी का पहला निर्यात “इथोपिया” और “अदन” देश के मध्य हुआ. ५- विश्व में पहला काफी-हाउस १५५४ ईस्वी में इस्ताम्बुल में खोला गया. ६- तुर्की के ओटोमन सुलतान सलीम के शासनकाल में मक्का के धार्मिक केंद्र १५३४ ईस्वी में “मुफ्ती मुहमेत अबुसूद अल इमादी” नें फतवा जारी कर काफी पीने पर प्रतिबन्ध लगा दिया. ७- मिस्र के काहिरा धार्मिक केंद्र ने भी १५३२ ईस्वी में फतवा जारी कर काफी पीना प्रतिबंधित कर दिया. ८- ठीक इसी प्रकार १२ वीं शताव्दी के आस-पास इथोपिया के ओर्थोडोक्स चर्च ने भी काफी पीना प्रतिबंधित कर दिया. ९- उन्नीसवीं शताव्दी के मध्य में काफी की लोकप्रियता देखते हुए,ये सभी प्रतिबन्ध हटा लिए गए.जिसके बाद १८८० से १८८६ ईस्वी के मध्य काफी का जबरदस्त प्रचार और प्रसार हुआ. १०- अमेरिका में काफी की खेती १७३४ एस्स्वी से प्रारंभ,और ब्राजील में १७२७ ईस्वी में प्रारंभ हुई. ११- ब्राजील विश्व का सर्वाधिक काफी उत्पादक देश है,और भारत का स्थान विश्व काफी उत्पादन में छठा है. १२ – काफी के गुण का सर्वप्रथम अनुभव नवी शताव्दी में “कालदी” नामक “इथोपिया” के एक बकरी चराने बाले गड़रिए ने देखा,की एक बेरी जैसे पेड़ के फल खाते ही उसकी बकरियां “उछल-कूद मचाने ” लगती हैं,और ज्यादा चुस्त और फुर्तीली भी हो जाती हैं………..उसने अकस्मात् बेरी के उन फलों को खुद खाकर देखा,और महसूस किया की फल खाने से शरीर में ज्यादा “तरोताजगी,चुस्ती एवं फुर्ती” आती है,और थकान ख़त्म हो जाती है.बाद में अन्य गड़रिए भी इसका प्रयोग करने लगे और धीरे-धीरे ये इथोपिया से मिस्र और यमन होते हुए , समस्त विश्व में प्रयोग की जाने लगी.
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