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किसी दुकानदार ने कफ़न का कपडा नहीं दिया था,सर शादी लाल के अंतिम संस्कार के लिए.

Achche Din Aane Wale Hain
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अमर शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह को फांसी की सजा दिलाने वाले शादी लाल को अंग्रेजों ने पुरस्कृत करते हुए,सर की उपाधि दी और बहुत बड़ी धनराशी और ज़मीन भी,उनकी गद्दारी को बफादारी मानते हुए दी,आज सर शादी लाल एक शुगर मिल शामली उत्तर प्रदेश सहित अन्य कई उद्योगों के मालिक हैं,और स्वतंत्र भारत में एक सम्मानित समाजसेवी के रूप में जाने जाते है. भगत सिंह के विरुद्ध दुसरे प्रमुख सरकारी गवाह “मशहूर लेखक खुशवंत सिंह के पिता” थे,उन्हें भी गद्दारी के एवाज़ में अंग्रेजों नें ज़मीन और जायजाद दी,और आज वे भी एक सम्मानित समाज सेवी के रूप में याद किये जाते हैं. देशवासी तो भले ही अपने अमर शहीदों की कुर्वानी को भुलाकर,गद्दारों को समाजसेवी के रूप में देखते हैं,पर जब सर शादी लाल की मृत्यु हुई थी,तब उनके कस्वे के किसी भी दुकानदार ने “गद्दार के लिए कफ़न का कपडा” नहीं दिया था,शादी लाल के लड़कों का कफ़न का कपडा दिल्ली से लाकर अपने पिता का अंतिम संस्कार करना पड़ा था.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जनपद मुज़फ्फर नगर के सर छोटू राम डिग्री ( पी.जी.) कालेज से बी.एस.सी.(कृषि) की पढाई के दौरान,हम लोग “कंपनी बाग़” के समीप “नुमाइश कम्पाउंड” में हर वर्ष लगने वाली “प्रदर्शनी” का पूर्ण आनंद लेते थे.इस प्रदर्शनी के कार्यक्रमों के प्रमुख प्रायोजक “सर शादी लाल शुगर मिल लि.” होती थी.जिसका गुणगान सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान आयोजकों द्वारा बड़े गर्व और सम्मान से किया जाता था.

वर्ष १९९३ की गर्मियों में इस “प्रदर्शनी” में एक सज्जन से भेंट हुई,जो संभवता काफी अच्छी जानकारी रखते थे.सर्वप्रथम उन्ही से ये पता लगा कि “ये वो ही सर शादी लाल हैं,जो अमर शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह को फांसी लगवाने के लिए पूर्णतया जिम्मेद्दार है”

सचमुच उस बात से मुझे गंभीर आघात भी पहुंचा,और सहज विशवास भी नहीं हुआ,कि स्वतंत्र भारत के लोग अपने अमर शहीदों कि कुर्वानियों को इतनी आसानी से भुला देंगे,और क्रांतिकारियों के विरुद्ध गद्दारी,और उन्हें फांसी के तख्ते तक पहुंचाने वाले धूर्त और लोभी लोगों का महिमामंडन सार्वजनिक रूप से करते हुए,स्वं को धन्य समझेंगे.

उस दिन के बाद मै और मेरे कुछ मित्र “ऐसे किसी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे,जिसके प्रायोजक सर शादी लाल शुगर मिल लि. हो”. पर हम चार पांच लोगों के कार्यक्रम में न पहुँचने किसी को न तो परेशानी हुई,न अफ़सोस. प्रदर्शनी आज भी लगती है,कार्यक्रम भी होते हैं,प्रायोजक भी सर शादी लाल होते हैं,और हम जैसे लोग आज भी “सर शादी लाल का महिमामंडन कर खुद को गौरवान्वित अनुभव करते हैं.

क्या येही श्रद्धांजलि है,अमर शहीद क्रांतिकारियों के लहू कि,उनकी कुर्वानियों की……स्वतंत्र भारत में इससे निर्लज्ज

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