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धार्मिक स्थानों और कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर प्रयोग पर रोक लगनी चाहिए

Achche Din Aane Wale Hain
Achche Din Aane Wale Hain
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ये सत्य है के हमारा संविधान “प्रत्येक धर्म को अपनाने और पूजने” की पूर्ण स्वतंत्रता देता है,और हमें धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन की भी स्वतंत्रता देता है.परन्तु वर्तमान में धर्म की ओट में कुछ अनैतिक और विघटनकारी कार्य और परम्पराएँ प्रारम्भ कर दी गयी,जो किसी के हिट में भी नहीं हैं,और न ही किसी भी धार्मिक दृष्टिकोण से आवश्यक और अनिवार्य हैं. मंदिरों,मस्जिदों में ध्वनि विस्तारक यंत्रों का प्रयोग अर्थात लाउडस्पीकर का प्रयोग भी एक ऐसी ही अनावश्यक और विघटनकारी परंपरा है.लाउडस्पीकर के प्रयोग और लगाने या हटाने पर अक्सर देश में कई जगह तनाव,उप्द्रप,हिंसा और यहां तक की दंगों को भी जन्म देता है.हाल ही में मुरादाबाद में घाटी घटना इसका ज्वलंत उदाहरण है,जिसमें वहां के जिलाधिकारी की एकल आँख भी चोटिल हो गयी,और पुलिस को बल प्रयोग कर भीड़ को भगाना पड़ा.


पूजा बिना लाउडस्पीकर के हो सकती है,नमाज़ बिना लाउडस्पीकर के पड़ी जा सकती है…………….और ऐसा हजारों वर्षों से चला आ रहा है,पर कुछ एक वर्षों में लाउडस्पीकर का प्रयोग इतना बड़ा की ये धर्म का अनिवार्य अंग बन गया.जबकि धर्म और आस्था से इसका कोई लेना देना नहीं है. अत सरकार को धार्मिक कार्यों में लाउडस्पीकर के प्रयोग पर रोक लगा देनी चाहिए…….आपकी क्या राय है …………….अपने विचार अवश्य bataayen

आजकल तो धर्मस्थलों और उसके मानने वालों में आपसी होड़ लग गयी है,किसके लाउडस्पीकर की आवाज़ ज़्यादा तेज़ है……मंदिर में अगर दो घंटा लाउडस्पीकर बजे तो मस्जिद में चार घंटे………मंदिर का पुजारी अगर रात दो बजे आरती चालु कर दे,तो कोई आश्चर्य नहीं की मस्जिद से १२ बजे ही कुरआन सुनाई पड़ने लगे……..ये किसी को मतलब नहीं …कब क्या बज रहा है…..सुनता कौन है…….बस बजना चाहिए ……..मंदिर पर अगर दो लाउडस्पीकर लगे तो मस्जिद पर तीन लग्न ज़रूरी हो गया है………..ये पूजा नहीं अंधी दौड़ है….जिसमे हर कोई जीतना चाहता है…………सबकी भावनाएं बस इसी से जुडी है.धर्मों को नौटंकी बना दिया है……………..और भगबान दीन-हीन……जिसने साड़ी सृष्टि का निर्माण किया……उसके लिए ये पापी घर बनाते है…….भगबान का घर……..पाखंडी कहीं के.

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