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वर्षा १८५७ में जब पूरे देश में क्रान्ति की ज्वाला फूट रही थी ,आम जनता में गोरों के प्रति विद्रोह एवं असंतोष की भावना पनप रही थी.अंग्रेज़ों को स्थिति की गंभीरता का आकलन और पूर्ण आभास हो चुका था,जिसका विकल्प उन्होंने आम जनता को हिन्दु मुस्लिम में बाटने के प्रयास के रूप में निकाला,पर जनता में परस्पर मेल और भाई चारा के अटूट बंधन नें उनकी इस कूटनीति को सफल नहीं होने दिया.
१८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रूहेलखंड विशेष कर बरेली में विद्रोह का नेतृत्व रोहिला सरदार खां बहादुर खान पूर्ण समर्पण और निष्ठां के साथ किया और बरेली को स्वतंत्र करवाने अपूर्व योगदान दिया ,रुहेलखण्ड में दिल्ली के ‘अंतिम मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फर’ के अधीन ‘देशी सुशासन ‘कायम किया.अंग्रेज़ों की कूटनीति अर्थात आम जनता में धार्मिक वैमनस्य उत्पन्न करने के प्रयास के जवाब में दिल्ली के शासक बहादुर शाह ज़फर नें बरेली के नवाब खान बहादुर खां के पास एक फरमान माह जून १८५७ में भेजा ,जिसमें गौ बध्य को पूर्ण प्रतिबंधित करने का आदेश जारी किया गया था.
दिल्ली के मुग़ल शासक के शासनादेश और नवाब खान बहादुर खां की खुद की सोच के आधार पर गौ हत्या प्रतिबंधित करने सम्बन्धी एक कानून पास कराकर नें किया,पूरे शहर में मुनादी करायी गयी और जगह जगह पोस्टर लगाए गए,जिसके अनुसार पूरे शहर में कुछ निर्धारित स्थानों को छोड़कर गौ हत्या और गौ मांस बिक्री प्रतिबंधित कर दी गयी ,शहर में सभी गौ मांस बिक्री की दुकाने बंद करा दी गयी ,बल्कि स्वं गौ मांस बिक्री करने बालों नें अपनी दुकानें खुद बंद कर ली गयी.
खुद खान बहादुर खा नें अपने सहयोगियों के साथ शहर में घूम घूम कर गौ मांस विक्री करने वाली वाली दुकानों का निरिक्षण किया और ये सुनिश्चित किया कि शासनादेश का पूर्ण पालन हो रहा है अथवा नहीं.कानून तोड़ने वालों पर छै मास की कठोर कारावास और अर्थ दंड का प्रावधान कानून में रखा गया और उसका पूर्ण पालन कराया गया था.
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